tag:blogger.com,1999:blog-33386695111819783652024-03-13T10:24:49.714-07:00कवितायें जो मैंने अपने स्कूल में पढ़ी थीं ! कुछ यादkavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-40246817433998912442008-09-17T16:31:00.000-07:002008-09-17T16:43:23.121-07:00खूनी हस्ताक्षर<p><strong>कवि: गोपाल प्रसाद व्यास</strong></p> <p>वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं।<br />वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं। </p> <p>वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन, न रवानी है!<br />जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है! </p> <p>उस दिन लोगों ने सही-सही, खून की कीमत पहचानी थी।<br />जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मॉंगी उनसे कुरबानी थी। </p> <p>बोले, स्वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुम्हें करना होगा।<br />तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा। </p> <p>आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।<br />वह सुनो, तुम्हारे शीशों के, फूलों से गूँथी जाएगी। </p> <p>आजादी का संग्राम कहीं, पैसे पर खेला जाता है?<br />यह शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है” </p> <p>यूँ कहते-कहते वक्ता की, ऑंखें में खून उतर आया!<br />मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा, दमकी उनकी रक्तिम काया! </p> <p>आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले,”रक्त मुझे देना।<br />इसके बदले भारत की, आज़ादी तुम मुझसे लेना।” </p> <p>हो गई उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।<br />स्वर इनकलाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे। </p> <p>“हम देंगे-देंगे खून”, शब्द बस यही सुनाई देते थे।<br />रण में जाने को युवक खड़े, तैयार दिखाई देते थे। </p> <p>बोले सुभाष,” इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।<br />लो, यह कागज़, है कौन यहॉं, आकर हस्ताक्षर करता है? </p> <p>इसको भरनेवाले जन को, सर्वस्व-समर्पण काना है।<br />अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है। </p> <p>पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है।<br />इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्जवल रक्त गिराना है! </p> <p>वह आगे आए जिसके तन में, भारतीय ख़ूँ बहता हो।<br />वह आगे आए जो अपने को, हिंदुस्तानी कहता हो! </p> <p>वह आगे आए, जो इस पर, खूनी हस्ताक्षर करता हो!<br />मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए, जो इसको हँसकर लेता हो!” </p> <p>सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं!<br />माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं! </p> <p>साहस से बढ़े युबक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे!<br />चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे! </p> <p>फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे!<br />आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे! </p> <p>उस दिन तारों ना देखा था, हिंदुस्तानी विश्वास नया।<br />जब लिखा था महा रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया। </p> <p><strong><br /></strong></p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-85168090547618792302008-09-17T16:28:00.001-07:002008-09-17T16:50:19.534-07:00कृष्ण की चेतावनी<p><strong>- रामधारी सिंह “दिनकर” </strong></p><p>वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,<br />सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।<br />सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। </p> <p>मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,<br />दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,<br />भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। </p> <p>‘दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो,<br />तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।<br />हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे!</p> <p>दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका,<br />उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।<br />जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।</p> <p>हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,<br />डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-<br />‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। </p> <p>यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,<br />मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।<br />अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। </p> <p>‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल,<br />भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।<br />दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर। </p> <p>‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,<br />चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।<br />शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र। </p> <p>‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश, शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,<br />शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल, शत कोटि दण्डधर लोकपाल।<br />जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें, हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें। </p> <p>‘भूलोक, अतल, पाताल देख, गत और अनागत काल देख,<br />यह देख जगत का आदि-सृजन, यह देख, महाभारत का रण,<br />मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान, इसमें कहाँ तू है। </p> <p>‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख, पद के नीचे पाताल देख,<br />मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख।<br />सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं। </p> <p>‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन, साँसों में पाता जन्म पवन,<br />पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर, हँसने लगती है सृष्टि उधर!<br />मैं जभी मूँदता हूँ लोचन, छा जाता चारों ओर मरण। </p> <p>‘बाँधने मुझे तो आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है?<br />यदि मुझे बाँधना चाहे मन, पहले तो बाँध अनन्त गगन।<br />सूने को साध न सकता है, वह मुझे बाँध कब सकता है? </p> <p>‘हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना,<br />तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।<br />याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा। </p> <p>‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,<br />फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुँह खोलेगा।<br />दुर्योधन! रण ऐसा होगा। फिर कभी नहीं जैसा होगा। </p> <p>‘भाई पर भाई टूटेंगे, विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,<br />वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे, सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।<br />आखिर तू भूशायी होगा, हिंसा का पर, दायी होगा।’ </p> <p>थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े।<br />केवल दो नर ना अघाते थे, धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।<br />कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!</p> <p><strong><br /></strong></p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-43252624713417310112008-09-17T16:22:00.000-07:002008-09-17T16:24:11.432-07:00यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे !कवियत्री: सुभद्राकुमारी चौहान<br /><br />यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।<br />मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।<br />ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।<br />किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।<br />तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।<br />उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।<br />वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।<br />अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।<br />बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।<br />माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।<br />तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।<br />ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।<br />तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।<br />और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।<br />तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।<br />जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।<br />इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।<br />यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-19053025002746529572008-09-16T16:41:00.001-07:002008-09-16T16:41:37.298-07:00वीरों की पूजा !थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रातः ही मतवाले ?<br />कहाँ चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले ?<br />यहाँ प्रयाग न गंगा सागर, इधर न रामेश्वर काशी,<br />इधर किधर है तीर्थ तुम्हारा, कहाँ चले तुम सन्यासी |<br /><br />मुझे न जाना गंगा सागर , मुझे न रामेश्वर काशी,<br />तीर्थ राज चित्तोड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी,<br /><br />To add missing part here...<br /><br />सुंदरियों ने जहाँ देश हित जौहर व्रत करना सिखा,<br />स्वतंत्रता के लिए जहाँ बच्चों ने भी मरना सिखा,<br /><br />वहीँ जा रहा पूजा करने लेने सतियों की पद धूल ,<br />वहीँ हमारा दीप जलेगा , वहीँ चढेगा माला फूल !kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-18234858725471686002008-09-16T15:35:00.000-07:002008-09-16T15:39:50.315-07:00रीढ़ की हड्डी !<strong><span style="color: rgb(51, 102, 255);">मैं हूँ उनके साथ,खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़</span></strong><br /><br /><strong><span style="color: rgb(51, 102, 255);">कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार<br />कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार<br />एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़<br /><br />निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार<br />जिनकी जिह्वा पर होता है, उनके अंतर का अंगार<br />नहीं जिन्हें, चुप कर सकती है, आतताइयों की शमशीर<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़<br /><br />नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता<br />ऊँचे से ऊँचे सपनो को देते रहते जो न्योता<br />दूर देखती जिनकी पैनी आँख, भविष्यत का तम चीर<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़<br /><br />जो अपने कन्धों से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैं<br />पथ की बाधाओं को जिनके पाँव चुनौती देते हैं<br />जिनको बाँध नही सकती है लोहे की बेड़ी जंजीर<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़<br /><br />जो चलते हैं अपने छप्पर के ऊपर लूका धर कर<br />हर जीत का सौदा करते जो प्राणों की बाजी पर<br />कूद उदधि में नही पलट कर जो फिर ताका करते तीर<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़<br /><br />जिनको यह अवकाश नही है, देखें कब तारे अनुकूल<br />जिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्रा, कब दिक्शूल<br />जिनके हाथों की चाबुक से चलती हें उनकी तकदीर<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़<br /><br />तुम हो कौन, कहो जो मुझसे सही ग़लत पथ लो तो जान<br />सोच सोच कर, पूछ पूछ कर बोलो, कब चलता तूफ़ान<br />सत्पथ वह है, जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीर<br />मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़</span></strong><br /><br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh <p>kabhi nahi jo tyaj sakte hain apna nyayochit adhikar<br />kabhi nahi jo seh sakte hain seesh nava kar atyachar<br />ek akele ho ya unke saath khadi ho bhari bheed<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p> <p>nirbhay ho kar ghoshit karte jo apne udgar vichar<br />jinki jivha par hota hain unke antar ka angar<br />nahi jinhe chup kar sakti hain aat taiyo kee shamsheer<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p> <p>nahi jhuka karte jo duniya se karne ko samjhauta<br />unche se unche sapno ko dete rehte jo nyota<br />door dekhti jinki painee aankh bhavishyat ka tamcheer<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p> <p>jo apne kandho se parvat se badh takkar lete hain<br />path kee badhao ko jinke paanv chunauti dete hain<br />jinko baandh nahi sakti hain lohe kee bedee zanjeer<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p> <p>jo chalte hain apne chappar ke upar luka dharkar<br />haar jeet ka sauda karte prano kee baazi par<br />kood udadi mein nahi palat kar phir jo taaka karte teer<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p> <p>jinko yeh avkash nahi hain dekhe kab taare anukool<br />jinko yeh parvah yeh nahi hain kab tak bhadra kab dikshool<br />jinke haathon kee chabook se chalti hain unki takdeer<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p> <p>tum ho kaun, kaho jo mujhse sahi galat path lo toh jaan<br />soch soch kar pooch pooch kar bolo kab chalta toofan<br />sat path woh hain jis par apni chaati taane jaate veer<br />Main hoon unke saath khadi jo seedhi rakhte apni reedh</p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-38799017233593463642008-09-16T15:32:00.001-07:002008-09-16T15:32:30.618-07:00सर फ़रोशी की तमन्ना<p>-<span style="font-size:100%;"><b><a href="http://hi.literature.wikia.com/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2" title="राम प्रसाद बिस्मिल">राम प्रसाद बिस्मिल</a></b></span> <br /></p><p>सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है<br />देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।<br /><br /></p><p>करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत<br />देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।<br /><br /></p><p>ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार<br />अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।<br /><br /></p><p>वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ<br />हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।<br /><br /></p><p>खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद<br />आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।<br /><br /></p><p>है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर<br />और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर<br />खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।<br /><br /></p><p>हाथ जिन में हो जुनून कटते नहीं तलवार से<br />सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से<br />और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है।<br /><br /></p><p>हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़न<br />जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये क़दम<br />ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है।<br /><br /></p><p>दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब<br />होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज<br />दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है।<br /><br /></p>यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार<br />क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-41816277433887307322008-09-16T15:29:00.000-07:002008-09-17T16:14:25.101-07:00वह प्रदीप जो दीख रहा है-रामधारी सिंह "दिनकर"<br /><br /><p>वह प्रदीप जो दीख रहा हइ झिलमिल, दूर नहीं है;<br />थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।</p> <p>चिनगारी बन गयी लहू की बूँद जो पग से;<br />चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण-चिन्ह जगमग से।<br />शुरू हुई आराध्य-भुमि यह, क्लान्ति नहीं रे राही;<br />और नहीं तो पाँव लगे हैं क्यों पड़ने दगमग से?<br />बाकी होश तभी तक जब तक जलता तूर नहीं है;<br />थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।</p> <p>अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का,<br />सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश का।<br />एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ;<br />वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।<br />आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है;<br />थककर बाइठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।</p> <p>दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,<br />लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।<br />जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,<br />अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।<br />और अधिक ले जाँच, देवता इतन क्रूर नहीं है।<br />थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।</p> <p>दिनकर</p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-81685918671371106072008-09-16T15:26:00.000-07:002008-09-16T15:27:13.506-07:00वीर तुम बढ़े चलो<p>-<span dir="ltr"></span><a href="http://hi.literature.wikia.com/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80:%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80&action=edit&redlink=1" class="new" title="श्रेणी:द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी (अब तक बनाया नहीं)">द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी</a></p><p>वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! </p><p><br />हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे </p><p>ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी स्र्के नहीं </p><p>वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! </p><p><br />सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो </p><p>तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं </p><p>वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! </p><p><br />प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो </p><p>सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो </p><p>वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! </p><p><br />एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए </p><p>मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये </p><p>वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! </p><p><br />अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा </p><p>यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो </p><p>वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! </p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-86596500657425557682008-09-16T15:21:00.000-07:002008-09-16T15:24:54.256-07:00सतपुड़ा के जंगल /<p>--भवानीप्रसाद मिश्र</p><p> सतपुड़ा के घने जंगल।<br />नींद मे डूबे हुए से, ऊँघते अनमने जंगल।<br /></p><p>झाड ऊँचे और नीचे, चुप खड़े हैं आँख मीचे,<br />घास चुप है, कास चुप है, मूक शाल, पलाश चुप है।<br />बन सके तो धँसो इनमें, धँस न पाती हवा जिनमें,<br />सतपुड़ा के घने जंगल, ऊँघते अनमने जंगल।<br /><br /></p><p>सड़े पत्ते, गले पत्ते, हरे पत्ते, जले पत्ते,<br />वन्य पथ को ढँक रहे-से, पंक-दल मे पले पत्ते।<br />चलो इन पर चल सको तो, दलो इनको दल सको तो,<br />ये घिनोने, घने जंगल, नींद मे डूबे हुए से<br />ऊँघते अनमने जंगल।<br /><br /></p><p>अटपटी-उलझी लताऐं, डालियों को खींच खाऐं,<br />पैर को पकड़ें अचानक, प्राण को कस लें कपाऐं।<br />सांप सी काली लताऐं, बला की पाली लताऐं<br />लताओं के बने जंगल, नींद मे डूबे हुए से<br />ऊँघते अनमने जंगल।<br /><br /></p><p>मकड़ियों के जाल मुँह पर, और सर के बाल मुँह पर<br />मच्छरों के दंश वाले, दाग काले-लाल मुँह पर,<br />वात- झन्झा वहन करते, चलो इतना सहन करते,<br />कष्ट से ये सने जंगल, नींद मे डूबे हुए से<br />ऊँघते अनमने जंगल|<br /><br /></p><p>अजगरों से भरे जंगल। अगम, गति से परे जंगल|<br />सात-सात पहाड़ वाले, बड़े छोटे झाड़ वाले,<br />शेर वाले बाघ वाले, गरज और दहाड़ वाले,<br />कम्प से कनकने जंगल, नींद मे डूबे हुए से<br />ऊँघते अनमने जंगल।<br /><br /></p><p>इन वनों के खूब भीतर, चार मुर्गे, चार तीतर<br />पाल कर निश्चिन्त बैठे, विजनवन के बीच बैठे,<br />झोंपडी पर फ़ूंस डाले, गोंड तगड़े और काले।<br />जब कि होली पास आती, सरसराती घास गाती,<br />और महुए से लपकती, मत्त करती बास आती,<br />गूंज उठते ढोल इनके, गीत इनके, बोल इनके<br />सतपुड़ा के घने जंगल, नींद मे डूबे हुए से<br />उँघते अनमने जंगल।<br /><br /></p><p>जागते अँगड़ाइयों में, खोह-खड्डों खाइयों में,<br />घास पागल, कास पागल, शाल और पलाश पागल,<br />लता पागल, वात पागल, डाल पागल, पात पागल<br />मत्त मुर्गे और तीतर, इन वनों के खूब भीतर।<br />क्षितिज तक फ़ैला हुआ सा, मृत्यु तक मैला हुआ सा,<br />क्षुब्ध, काली लहर वाला, मथित, उत्थित जहर वाला,<br />मेरु वाला, शेष वाला, शम्भु और सुरेश वाला<br />एक सागर जानते हो, उसे कैसा मानते हो?<br />ठीक वैसे घने जंगल, नींद मे डूबे हुए से<br />ऊँघते अनमने जंगल|<br /><br /></p>धँसो इनमें डर नहीं है, मौत का यह घर नहीं है,<br />उतर कर बहते अनेकों, कल-कथा कहते अनेकों,<br />नदी, निर्झर और नाले, इन वनों ने गोद पाले।<br />लाख पंछी सौ हिरन-दल, चाँद के कितने किरन दल,<br />झूमते बन-फ़ूल, फ़लियाँ, खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,<br />हरित दूर्वा, रक्त किसलय, पूत, पावन, पूर्ण रसमय<br />सतपुड़ा के घने जंगल, लताओं के बने जंगल।kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-29379125659353519402008-09-16T15:15:00.001-07:002008-09-16T15:15:56.830-07:00हिमालय<p><span dir="ltr"><a href="http://hi.literature.wikia.com/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80:%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A5%80&action=edit&redlink=1" class="new" title="श्रेणी:सोहनलाल द्विवेदी (अब तक बनाया नहीं)">सोहनलाल द्विवेदी</a></span></p><p>खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आँधी पानी में,<br />खड़े रहो अपने पथ पर, सब कठिनाई तूफानी में!<br /><br /></p><p>डिगो न अपने प्रण से तो –– सब कुछ पा सकते हो प्यारे!<br />तुम भी ऊँचे हो सकते हो, छू सकते नभ के तारे!!<br /><br /></p>अचल रहा जो अपने पथ पर, लाख मुसीबत आने में,<br />मिली सफलता जग में उसको, जीने में मर जाने में!kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-16301646669959612792008-09-16T15:10:00.000-07:002008-09-16T15:11:27.186-07:00हम पंछी उन्मुक्त गगन के<p><span dir="ltr"><a href="http://hi.literature.wikia.com/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80:%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%A8&action=edit&redlink=1" class="new" title="श्रेणी:शिवमंगल सिंह सुमन (अब तक बनाया नहीं)">शिवमंगल सिंह सुमन</a></span></p><p>हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे, </p><p>कनक-तीलियों से टकराकर, पुलकित पंख टूट जाऍंगे। </p><p><br />हम बहता जल पीनेवाले, मर जाऍंगे भूखे-प्यासे, </p><p>कहीं भली है कटुक निबोरी, कनक-कटोरी की मैदा से, </p><p><br />स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में, अपनी गति, उड़ान सब भूले, </p><p>बस सपनों में देख रहे हैं, तरू की फुनगी पर के झूले। </p><p><br />ऐसे थे अरमान कि उड़ते, नील गगन की सीमा पाने, </p><p>लाल किरण-सी चोंचखोल, चुगते तारक-अनार के दाने। </p><p><br />होती सीमाहीन क्षितिज से, इन पंखों की होड़ा-होड़ी, </p><p>या तो क्षितिज मिलन बन जाता, या तनती सॉंसों की डोरी। </p><p><br />नीड़ न दो, चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो, </p><p>लेकिन पंख दिए हैं, तो, आकुल उड़ान में विघ्न न डालों। </p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-58097512400811693502008-09-16T15:05:00.000-07:002008-09-16T15:07:38.398-07:00रसखान<p>मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। </p><p>जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ </p><p>पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन। </p><p>जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥<br /></p><p><br /></p><p>या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। </p><p>आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥ </p><p>रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। </p><p>कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥<br /></p><p><br /></p><p>सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै। </p><p>जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ </p><p>नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं। </p><p>ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥<br /></p><p><br /></p><p>मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी। </p><p>ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वारन संग फिरौंगी।। </p><p>भावतो मोहि मेरो रसखान, सो तेरे कहे सब स्वाँग भरौंगी। </p><p>या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी।। </p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-89995519371735274292008-09-16T15:01:00.001-07:002008-09-16T15:01:42.652-07:00जो बीत गई सो बात गयी<p> हरिवंशराय बच्चन<br /></p><p>जीवन में एक सितारा था<br />माना वह बेहद प्यारा था<br />वह डूब गया तो डूब गया<br />अंबर के आंगन को देखो<br />कितने इसके तारे टूटे<br />कितने इसके प्यारे छूटे<br />जो छूट गये फ़िर कहां मिले<br />पर बोलो टूटे तारों पर<br />कब अंबर शोक मनाता है<br />जो बीत गई सो बात गई<br /></p><p><br />जीवन में वह था एक कुसुम<br />थे उस पर नित्य निछावर तुम<br />वह सूख गया तो सूख गया<br />मधुबन की छाती को देखो<br />सूखी कितनी इसकी कलियां<br />मुरझाईं कितनी वल्लरियां<br />जो मुरझाईं फ़िर कहां खिली<br />पर बोलो सूखे फ़ूलों पर<br />कब मधुबन शोर मचाता है<br />जो बीत गई सो बात गई<br /></p><p><br />जीवन में मधु का प्याला था<br />तुमने तन मन दे डाला था<br />वह टूट गया तो टूट गया<br />मदिरालय का आंगन देखो<br />कितने प्याले हिल जाते हैं<br />गिर मिट्टी में मिल जाते हैं<br />जो गिरते हैं कब उठते हैं<br />पर बोलो टूटे प्यालों पर<br />कब मदिरालय पछताता है<br />जो बीत गई सो बात गई<br /></p><p><br />मृदु मिट्टी के बने हुए हैं<br />मधु घट फ़ूटा ही करते हैं<br />लघु जीवन ले कर आए हैं<br />प्याले टूटा ही करते हैं<br />फ़िर भी मदिरालय के अन्दर<br />मधु के घट हैं मधु प्याले हैं<br />जो मादकता के मारे हैं<br />वे मधु लूटा ही करते हैं<br />वह कच्चा पीने वाला है<br />जिसकी ममता घट प्यालों पर<br />जो सच्चे मधु से जला हुआ<br />कब रोता है चिल्लाता है<br />जो बीत गई सो बात गई </p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-75572527302582324412008-09-16T14:53:00.000-07:002008-09-16T14:58:24.037-07:00पुष्प की अभिलाषा<h1 class="firstHeading"><span style="font-size:100%;">माखनलाल चतुर्वेदी</span></h1><p>चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूंथा जाऊँ, </p><p>चाह नहीं प्रेमी-माला में,बिंध प्यारी को ललचाऊँ, </p><p>चाह नहीं, सम्राटों के शव, पर, है हरि, डाला जाऊँ </p><p>चाह नहीं, देवों के शिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ! </p><p>मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, </p><p>मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक। </p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-19184901887031948702008-09-16T14:46:00.000-07:002008-09-16T14:53:42.805-07:00झाँसी की रानी<p class="poemtitle" lang="hi">झाँसी की रानी</p> <p class="mainhindi" lang="hi"> सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,<br />बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,<br />गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,<br />दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।<br />चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,<br />लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,<br />नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,<br />बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।<br />वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,<br />देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,<br />नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,<br />सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।<br />महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,<br />ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,<br />राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,<br />चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,<br />किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,<br />तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,<br />रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।<br />निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,<br />राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,<br />फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,<br />लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।<br />अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,<br />व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,<br />डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,<br />राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।<br />रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,<br />कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,<br />उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?<br />जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।<br />बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,<br />उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,<br />सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,<br />'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।<br />यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,<br />वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,<br />नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,<br />बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।<br />हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,<br />यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,<br />झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,<br />मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,<br />जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,<br />नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,<br />अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,<br />भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।<br />लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,<br />जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,<br />लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,<br />रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।<br />ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,<br />घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,<br />यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,<br />विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।<br />अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,<br />अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,<br />काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,<br />युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।<br />पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,<br />किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,<br />घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,<br />रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।<br />घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,<br />मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,<br />अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,<br />हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,<br />दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br />जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,<br />यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,<br />होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,<br />हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।<br />तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,<br />बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br /><br /></p> <p class="poetname" lang="hi"> सुभद्रा कुमारी चौहान </p>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-27249839361831453962008-09-16T14:32:00.000-07:002008-09-16T14:46:23.776-07:00"माँ कह एक कहानी।"<p><span style="font-size:100%;"> <b>रचनाकार: मैथिलीशरण गुप्त </b></span><br /></p><p>"माँ कह एक कहानी।"<br />बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"<br />"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी<br />कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?<br />माँ कह एक कहानी।"<br /><br /></p><p>"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,<br />तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।"<br />"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"<br /><br /></p><p>वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,<br />हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"<br />"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।"<br /><br /></p><p>"गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,<br />गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।"<br />"हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!"<br /><br /></p><p>चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,<br />इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"<br />"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"<br /><br /></p><p>"माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,<br />तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"<br />"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"<br /><br /></p><p>हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,<br />गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"<br />"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"<br /><br /></p>राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"<br />"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।<br />कोई निरपराध को मारे तो क्यों न उसे उबारे?<br />रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"<br />"न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।"kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3338669511181978365.post-91909798724852312252008-09-16T14:26:00.000-07:002008-09-16T14:32:07.442-07:00शक्ति और क्षमा !<strong>कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"<br /><br /></strong>क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल, सबका लिया सहारा<br />पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे, कहो कहाँ कब हारा?<br /><br />क्षमाशील हो ॠपु-सक्षम, तुम हुये विनीत जितना ही<br />दुष्ट कौरवों ने तुमको, कायर समझा उतना ही<br /><br />क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल है<br />उसका क्या जो दंतहीन, विषरहित विनीत सरल है<br /><br />तीन दिवस तक पंथ मांगते, रघुपति सिंधु किनारे<br />बैठे पढते रहे छन्द, अनुनय के प्यारे प्यारे<br /><br />उत्तर में जब एक नाद भी, उठा नही सागर से<br />उठी अधीर धधक पौरुष की, आग राम के शर से<br /><br />सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि, करता आ गिरा शरण में<br />चरण पूज दासता गृहण की, बंधा मूढ़ बन्धन में<br /><br />सच पूछो तो शर में ही, बसती है दीप्ति विनय की<br />संधिवचन सम्पूज्य उसीका, जिसमे शक्ति विजय की<br /><br />सहनशीलता, क्षमा, दया को, तभी पूजता जग है<br />बल का दर्प चमकता उसके, पीछे जब जगमग <span>है !<br /><br />~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~<br /></span>kavitaprayashttp://www.blogger.com/profile/14145893552238439558noreply@blogger.com1