थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रातः ही मतवाले ?
कहाँ चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले ?
यहाँ प्रयाग न गंगा सागर, इधर न रामेश्वर काशी,
इधर किधर है तीर्थ तुम्हारा, कहाँ चले तुम सन्यासी |
मुझे न जाना गंगा सागर , मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थ राज चित्तोड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी,
To add missing part here...
सुंदरियों ने जहाँ देश हित जौहर व्रत करना सिखा,
स्वतंत्रता के लिए जहाँ बच्चों ने भी मरना सिखा,
वहीँ जा रहा पूजा करने लेने सतियों की पद धूल ,
वहीँ हमारा दीप जलेगा , वहीँ चढेगा माला फूल !
Tuesday, September 16, 2008
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11 comments:
थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रातः ही मतवाले ?
कहाँ चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले ?
इधर प्रयाग न गंगा सागर, इधर न रामेश्वर काशी,
इधर किधर है तीर्थ तुम्हारा, कहाँ चले तुम सन्यासी |
चले झूमते मस्ती से तुम, अपना पथ आये भूल,
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा, कहाँ चढ़ेगा माला फूल ।
मुझे न जाना गंगा सागर , मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थ राज चित्तोड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी।
अपने अटल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली ,
निकल पड़े लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली ।
जहां आन पर माँ-बहनों की, जला-जला पावन होली,
वीर मंडली गर्वित स्वर से, जय माँ की जय-जय बोली ।
सुंदरियों ने जहाँ देश हित जौहर व्रत करना सिखा,
स्वतंत्रता के लिए जहाँ बच्चों ने भी मरना सिखा,
वहीँ जा रहा पूजा करने लेने सतियों की पद धूल ,
वहीँ हमारा दीप जलेगा , वहीँ चढेगा माला फूल !
जहां पदमिनि जौहर व्रत कर, चढ़ती चिता की ज्वाला पर,
क्षण भर वहीँ समाधी लगेगी, बैठ इसी मृग छाला पर ।
i think it is still incomplete.....
as i know some more lines....such as
kaha chale le chandan akshat bagal dabaaye mragchhala
kaha chali ye saji murti kaha chali juhi mala
le moji upveet mekhla kaha chale tum deewane
jal se bhara kamandal lekar
kise chale tum nahlaane
......
....
wahi milegi shanti wahi par swastha hamara mann hoga
veer varo ki puja hogi khango ka darshan hoga
nahi rahi thi chita bhasm kan to hoga us rani ka
kahi na kahi to pada milega charan chihn maharani ka....thanks
i think it is still incomplete.....
as i know some more lines....such as
kaha chale le chandan akshat bagal dabaaye mragchhala
kaha chali ye saji murti kaha chali juhi mala
le moji upveet mekhla kaha chale tum deewane
jal se bhara kamandal lekar
kise chale tum nahlaane
......
....
wahi milegi shanti wahi par swastha hamara mann hoga
veer varo ki puja hogi khango ka darshan hoga
nahi rahi thi chita bhasm kan to hoga us rani ka
kahi na kahi to pada milega charan chihn maharani ka....thanks
True....... Iss sey badiya aur pavitr jagah koi aur ho hi nhi sakta....
Naman unn veeron ko jinhono apne desh aur samann ki leye dusto kai saamne samrpan nhi kiya..... Sat sat naman unn naariyo ko jinhone sati hona swekkar kiya parantu apne maan nhi gawaya........ Aur dhikkar unn purwajo per jo aapas m hi padte rhe aur hamesh dusmano se haarte rhe..... Hamara mahan itihash??????
थाल सजाकर किसे पूजने
चले प्रात ही मतवाले?
कहाँ चले तुम राम नाम का
पीताम्बर तन पर डाले?
कहाँ चले ले चन्दन अक्षत
बगल दबाए मृगछाला?
कहाँ चली यह सजी आरती?
कहाँ चली जूही माला?
ले मुंजी उपवीत मेखला
कहाँ चले तुम दीवाने?
जल से भरा कमंडलु लेकर
किसे चले तुम नहलाने?
मौलसिरी का यह गजरा
किसके गज से पावन होगा?
रोम कंटकित प्रेम - भरी
इन आँखों में सावन होगा?
चले झूमते मस्ती से तुम,
क्या अपना पथ आए भूल?
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा,
कहाँ चढ़ेगा माला - फूल?
इधर प्रयाग न गंगासागर,
इधर न रामेश्वर, काशी।
कहाँ किधर है तीर्थ तुम्हारा?
कहाँ चले तुम संन्यासी?
क्षण भर थमकर मुझे बता दो,
तुम्हें कहाँ को जाना है?
मन्त्र फूँकनेवाला जग पर
अजब तुम्हारा बाना है॥
नंगे पैर चल पड़े पागल,
काँटों की परवाह नहीं।
कितनी दूर अभी जाना है?
इधर विपिन है, राह नहीं॥
मुझे न जाना गंगासागर,
मुझे न रामेश्वर, काशी।
तीर्थराज चित्तौड़ देखने को
मेरी आँखें प्यासी॥
अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर
सुनकर वैरी की बोली
निकल पड़ी लेकर तलवारें
जहाँ जवानों की टोली,
जहाँ आन पर माँ - बहनों की
जला जला पावन होली
वीर - मंडली गर्वित स्वर से
जय माँ की जय जय बोली,
सुंदरियों ने जहाँ देश - हित
जौहर - व्रत करना सीखा,
स्वतंत्रता के लिए जहाँ
बच्चों ने भी मरना सीखा,
वहीं जा रहा पूजा करने,
लेने सतियों की पद-धूल।
वहीं हमारा दीप जलेगा,
वहीं चढ़ेगा माला - फूल॥
वहीं मिलेगी शान्ति, वहीं पर
स्वस्थ हमारा मन होगा।
प्रतिमा की पूजा होगी,
तलवारों का दर्शन होगा॥
वहाँ पद्मिनी जौहर-व्रत कर
चढ़ी चिता की ज्वाला पर,
क्षण भर वहीं समाधि लगेगी,
बैठ इसी मृगछाला पर॥
नहीं रही, पर चिता - भस्म तो
होगा ही उस रानी का।
पड़ा कहीं न कहीं होगा ही,
चरण - चिह्न महरानी का॥
उस पर ही ये पूजा के सामान
सभी अर्पण होंगे।
चिता - भस्म - कण ही रानी के,
दर्शन - हित दर्पण होंगे॥
आतुर पथिक चरण छू छूकर
वीर - पुजारी से बोला;
और बैठने को तरु - नीचे,
कम्बल का आसन खोला॥
देरी तो होगी, पर प्रभुवर,
मैं न तुम्हें जाने दूँगा।
सती - कथा - रस पान करूँगा,
और मन्त्र गुरु से लूँगा॥
कहो रतन की पूत कहानी,
रानी का आख्यान कहो।
कहो सकल जौहर की गाथा,
जन जन का बलिदान कहो॥
कितनी रूपवती रानी थी?
पति में कितनी रमी हुई?
अनुष्ठान जौहर का कैसे?
संगर में क्या कमी हुई?
अरि के अत्याचारों की
तुम सँभल सँभलकर कथा कहो।
कैसे जली किले पर होली?
वीर सती की व्यथा कहो॥
धन्यवाद कुंजन, विक्रम और नीती सिंह जी, इस कालजयी कविता को सभी से साझा करने हेतु. अभी ये कविता पूर्ण हुई. चित्तोड के महान वीरो की शौर्य गाथा को जैसे कविश्रेष्ठ श्री श्याम नारायण पाण्डेय जी ने अपनी कलम के मोतियों से पिरोया है वैसा हिंदी साहित्य में अन्यत्र विरले ही दृष्टीगोचर होता है.
Bahut sundar rachna
Niti singh ji aaj phir bachpan yad aa gaya.
Isme kavi kya sandesh dena chahta hai??
नयनो की करुणा मे बहकर
वो सारा इतिहास धुला ।
शुध्द हुआ जब हृदय कमल
तब फिर से पुष्प पलाश हुआ।।
बहुत सुन्दर ब्लॉग वीर रस के लेखको को आपने सच्चा सम्मान दिया या है नमन है आपको आपने उनकी कलम को सहेज कर रक्खा है आपको कोटि कोटि वंदन आभार अभिनन्दन
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